हर हर महादेव, जय हो नाथो के नाथ भोले नाथ की, जी हा हम लेकर आयें है सम्पूर्ण जानकारी सबसे बड़े पर्व महाशिवरात्रि 2021 (Mahashivratri Parv 2021) पर, देवों के देव महादेव का यह पर्व महाशिवरात्रि समूचे संसार में जहाँ जहाँ भी हिन्दू संस्कृति निवास करती है अत्यंत हर्षोल्लास एवं धूमधाम के साथ मनाया जाता है.
जैसा कि हम सब जानते हैं कि ओघड्नाथ से बड़ा कोई पूजनीय धरा पर नहीं है जिनकी पूजा सभी देवी देवताओं के द्वारा भी की जाती है. तो चलिए इस निबंध के माध्यम से हम जानते हैं कि कब है भगवान शिव की आराधना उपासना से जुड़ा हुआ पर्व महाशिवरात्रि ? महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है ? महाशिवरात्रि अनुष्ठान के तरीकें क्या हैं ?



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कब है महाशिवरात्रि 2021? (Mahashivratri Parv 2021-Shubh Muhurat-Mahashivratri Celebration)
महाशिवरात्रि पर्व फाल्गुन मास चतुर्दशी को मनाया जाता है. इस साल (वर्ष) महाशिवरात्रि पर्व (Mahashivratri 2021 Date) दिनांक 11 मार्च 2021 दिन बृहस्पतिवार यानि गुरुवार को मनाया जाएगा. ज्योतिष गणना के अनुसार पूजन मुहूर्त की अवधि 11 मार्च की रात 12:06 से 12:00 बज कर 55 मिनट तक रहेगी इस दिन का नक्षत्र घनिष्ठा रहेगा.
जिस प्रकार हमारा दिन चार प्रहर में विभक्त होता है उसी तरह महाशिवरात्रि की आराधना के समय को भी चार हिस्सों में बाटा गया है, माना जाता कि विशेष मुहूर्त व चारों प्रहर में विधि विधान से पूजा करने से पूरा लाभ मिलता है.
इस साल 2021 में चारों प्रहर का समय कुछ इस प्रकार से रहेगा-
रात्रि के प्रथम प्रहर में पूजा का समय: 11 मार्च को सांयकाल 6 बजे 27 मिनट से लेकर रात में 9 बजकर 29 मिनट तक.
रात्रि के द्वितीय प्रहर में पूजा का समय: 12 मार्च को रात में 09:29 मिनट से लेकर 12: 31 मिनट तक.
रात्रि के तृतीय प्रहर में पूजा का समय: 12 मार्च को सुबह 12:31 मिनट से लेकर सुबह 03:32 मिनट तक.
रात्रि के चतुर्थ प्रहर में पूजा का समय: 12 मार्च को सुबह 03:32 मिनट से लेकर सुबह 06:34 मिनट तक.
महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है? व इसके पीछे की कथाएं | Mahashivratri Parv 2021 Date
शास्त्रों के अनुसार महाशिवरात्रि पर्व (Mahashivratri Parv 2021) को मनाने के पीछे बहुत सारी कहानियां है जिनमे अलग अलग तरीकों से समझाया गया है इस महान व विशाल पर्व महाशिवरात्रि के विषय में, इन्ही में से एक है जिसमे इस दिन ही महादेव के अग्नि लिंग का सृजन होने के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है, जिससे सृष्टि की शुरुआत भी माना जाता है.
महाशिवरात्रि उत्सव को मनाने का दूसरा कारण है भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह, माना जाता है कि भोले नाथ और माता पार्वती का विवाह इस दिन हुआ था जिसकी ख़ुशी में भक्त इस दिन को तभी से महाशिवरात्रि पर्व के रूप में मनातें हैं. माता पार्वती भगवान शिव की प्रथम पत्नी सती का ही दूसरा जन्म है.
महाशिवरात्रि कविता | Mahashivratri Celebration



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महाशिवरात्रि पर्व से जुड़ी हुई कुछ प्रचलित कथाएं | Mahashivratri Parv 2021- Mahashivratri Celebration
यहाँ हम महाशिवरात्रि पर्व से जुडी हुई कुछ अति महत्वपूर्ण कथाओं के बारे में विस्तार से वर्णन करके जानेंगे इस महापर्व की अद्भूत महत्ता और महात्म्य के बारें में.
समुद्र मंथन (Samundra Manthan) | Mahashivratri Parv 2021
ऋषि दुर्वासा के श्राप से लक्ष्मी मतलब श्री लुप्त हो जाने पर और असुरों के अधिक शक्तिशाली हो जाने पर अमृत व श्री को वापिस पाने के लिए देवताओं ने असुरों के साथ मिलकर क्षीर सागर में समुद्र मंथन किया था परंतु समुद्र को मथे जाने पर अमृत से पहले हलाहल नाम का विष निकला, उस विष को केवल शिवजी ही ग्रहण कर सकते थे.
इसीलिए संसार की रक्षा के लिए उन्होंने विष ग्रहण किया था. वह विष अत्यंत पीड़ा दायी था और अगर वह विष उनके शरीर में चला जाता तो वह उसे सहन नहीं कर पाते. यही सब जानकर माँ पार्वती ने महाकाली का रूप लेकर हलाहल नामक विष को हाथ के स्पर्श से शिव जी के कंठ में ही रोक दिया. जिसके कारण उनका कंठ नीला पड़ गया. उसी दिन से उन्हें नीलकंठ नाम से भी जाना जाता है. वह दिन भी महाशिवरात्रि का था कहा यह भी जाता है कि इस रात्रि को भगवान शिव ने नृत्य किया था.
शिकारी की कथा (Shikari Ki Katha) | Mahashivratri Parv 2021-Mahashivratri Celebration
एक और पौराणिक व्रत कथा के अनुसार चित्रभानु नामक एक शिकारी था जो अपने परिवार का भरण पोषण जानवरों को मारकर करता था. उसके ऊपर एक साहूकार का ऋण था. परंतु वह ऋण देने में समर्थ नहीं था. उसके समय पर ऋण न देने के कारण साहूकार ने एक दिन उसे शिव मठ में बंदी बना लिया. पूरे दिन भूख से व्याकुल रहते हुए उसने शिव का स्मरण किया संयोग से उसी दिन महाशिवरात्रि पर्व भी था.
शिकारी का पूरा दिन शिव का स्मरण करते करते और भूखा रहते हुए बीत गया साहूकार ने शाम को उसको अगले दिन तक का समय देकर छोड़ दिया शिकारी ने भी वचन दिया कि मैं कल आप का ऋण चुका दूंगा. तब भूख से व्याकुल शिकारी शिकार ढूढ़ने के लिए जंगल में चला गया.
शिकारी की जंगल में रात व शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पण
वहां शाम से रात हो गई पर उसे कोई भी शिकार नहीं मिला. उसने सोचा अब रात भी यहीं पर गुजारनी पड़ेगी ऐसा कहकर वह तालाब के पास एक बेलपत्र के पेड़ पर जाकर चढ़ गया. उस बेलपत्र के पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था जो कि बेलपत्र के पत्तों से ढका हुआ था. शिकारी को उस बात का पता ही नहीं चला जब वहां पर बैठे-बैठे उसे देर हो गई और उसे कोई शिकार ना मिला तो वह बेलपत्र तोड़ तोड़कर उस लिंग पर गिराने लगा.
इस प्रकार से दिन भर का व्रत रखने के बाद उसका व्रत भी हो गया और शिवलिंग को बेलपत्र भी अर्पित हो गयें
हिरणी की गुहार
तभी वहां से एक हिरणी तालाब में पानी पीने आयी शिकारी ने हिरणी को देखा व बाण धनुष में लगाकर हिरणी की तरफ निशाना साधने लगा तब हिरणी ने शिकारी से गुहार लगाई और कहां कि मैं अभी गर्भवति हूँ और जल्द ही प्रसव करूंगी.
इस समय यदि तुम मुझे मारोगे तो इससे तुम्हें दो हत्याओं का पाप लगेगा इसलिए अभी मुझे जाने दो जब मेरा प्रसव हो जायेगा तो मैं स्वंय तुम्हारे पास आ जाउंगी तब मुझे मार लेना.
शिकारी ने अपनी प्रत्यंचा ढीली करके उसे जाने दिया प्रत्यंचा चढ़ाते वक्त बेलपत्र के पत्ते पेड़ पर से टूटकर अनजाने में ही शिवलिंग पर दोबारा गिर गए इस प्रकार शिकारी की प्रथम पहर की पूजा संपन्न हो गई कुछ और देर के बाद वहां पर एक और हिरणी आई इस बार भी शिकारी ने बाण चढ़ाकर प्रत्यंचा खींच ली जैसे ही वह शिकार करने वाला था तुरंत उसे हिरनी ने रोक लिया और कहा मैं जंगल में अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं उनसे मिलकर मैं वापस आ जाऊंगी तब तुम मुझे मार लेना शिकारी ने उसे भी जाने दिया.
रात्रि का अंतिम पहर बीत रहा था उसी समय कुछ और पत्ते टूट कर दोबारा शिवलिंग पर गिर गए और इस प्रकार उसके दूसरे पहर की पूजा भी संपन्न हो गई कुछ समय बाद वहां पर एक और हिरणी अपने बच्चों को लेकर आई इस बार शिकारी ने शिकार करने की ठान ली और फिर से शिकार करने के लिए तैयार हो गया परंतु इस बार भी उससे हिरणी ने उसे रोक लिया और कहा मैं इन बच्चों की माता हूं इन्हें इनके पिता के हवाले करके मैं वापस यहां लौट आऊंगी तब मुझे मार लेना.
हिरणी की बार बार की गुहार पर कैसे क्रोधित हुआ शिकारी ?
इस पर शिकारी बोला तुमसे पहले भी दो हिरनी छोड़ चुका हूं मेरा परिवार भूख से व्याकुल हो रहा होगा. मैं इतना भी मुर्ख नहीं हूं कि सामने आए शिकार को दुबारा छोड़ दो इस पर हिरनी ने कहा हे शिकारी मुझ पर विश्वास करो मैं सच में इन्हें इनके पिता के हवाले करके तुम्हारे पास आने की प्रतिज्ञा करती हूं.
इसी तरह शिकारी ने उसे भी छोड़ दिया इसी क्रम में सुबह हो गई और शिकारी की शिवरात्रि की पूजा भी हो गई और उसका व्रत भी संपन्न हो गया कुछ देर बाद वहां से एक हिरण गुजरा इस बार शिकारी ने पक्का निश्चय करके उसका शिकार करने की सोची जैसे ही शिकारी उसका शिकार करने के लिए सतर्क हुआ उस हिरण ने शिकारी को कहा, इससे पहले आई तीनों हिरनी मेरी पत्नियां थी.
यदि तुमने मुझसे पहले आई तीनों ही हिरणियों को और बच्चों को मार दिया है तो मुझे भी मार दो ताकि उनसे दूर होने का कष्ट मुझे झेलना ना पड़े और यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी जाने दो क्योंकि यदि तुमने मुझे मार दिया तो वह अपने वचन का पालन नहीं कर पायेंगीं.
मैं उनसे मिलकर तुम्हारे पास लौट आऊंगा और तुम मुझे तब मार लेना मेरा विश्वास करो मैं प्रतिज्ञा करता हूं तब उस शिकारी की आंखों के सामने पूरी रात का घटनाक्रम घूमने लगा शिकारी ने उसे भी जाने दिया शिवरात्रि की पूजा और व्रत के कारण शिकारी का कठोर और हिंसक हृदय निर्मल हो गया था.
जब वह हिरण का परिवार अपनी प्रतिज्ञा अनुसार वापिस शिकारी के पास आया तो उन्हें अपनी सत्यता और प्रतिज्ञा को इस प्रकार निभाते देख शिकारी का मन आत्मग्लानि से भर गया और उसने उन सभी को जाने दिया और उनमें से किसी को नहीं मारा यह दृश्य सभी देवगण और शिवगण देख रहे थे.
इसके बाद शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हो गई और मरने के बाद शिवगण उसे शिवलोक ले गए इस कथा के माध्यम से यह बताने की कोशिश की गई है की शिकारी ने यह व्रत अनजाने में किया इसका मतलब उसकी कोई इच्छा भी नहीं थी हमें भी शिवरात्रि का व्रत या कोई भी पूजा अर्चना बिना किसी लालच के करनी चाहिए.
महाशिवरात्रि में कैसे करें जलाभिषेक और शिव जी की पूजा | Mahashivratri Wishes
महाशिवरात्रि पर्व (Mahashivratri Wishes) पर सुबह-सुबह मंदिरों में भीड़ उमड़ पड़ती है और नदियों के घाटों पर तो लोगों का तांता लग जाता है सभी लोग पहले नदियों के घाटों पर स्नान करते हैं और फिर मंदिर जाकर शिवजी का जलाभिषेक और उनकी पूजा अर्चना करते हैं परंतु आज हम आपको उनका जलाभिषेक करने के उचित वस्तुएं एवं सामग्रियां बताएंगे और बताएंगे पूजा अर्चना में क्या क्या इस्तेमाल नहीं करना चाहिए तो चलिए शुरू करते हैं
- शिवजी का जलाभिषेक पंचामृत से करना चाहिए जिसमें शहद दूध गी दही और बुरा का मिश्रण होता है.
- जलाभिषेक करने के बाद शिव जी के माथे पर चंदन से त्रिपुंड बनाया जाता है उसके बाद उनको पुष्पों से सजाया जाता है.
- मुख्यतः उन्हें गुलाब और गेंदे से सजाया जाता है कुछ लोग उन्हें रुद्राक्ष की माला भी अर्पण करते हैं उसके बाद शिव जी को बेर बेलपत्र भांग एवं धतूरा अर्पित किया जाता है
- उसके बाद धूप और दीपक को जलाकर उनकी आरती की जाती है इस प्रकार से संपन्न हो जाती है शिवजी की पूजा. सभी को महाशिवरात्रि पर्व की बधाई देते हुए (Mahashivratri Wishes).
यदि आप शिवजी को पंचामृत से स्नान नहीं करा पाते तो आप उनका दुग्ध अभिषेक मतलब दूध से स्नान भी करा सकते हैं
भगवान भोलेनाथ की पूजा में क्या ना करें, भगवान भोलेनाथ की पूजा में क्या ना करें अर्पण
देखियें जब हम कोई भी पूजा अर्चना करते है तो हम ये तो ध्यान रखते हैं कि उसमे क्या क्या सामग्री लेनी है लेकिन ये भूल जाते है कुछ सामग्री निषेध भी होती है अर्थात जिनका प्रयोग हमें नहीं करना है, चालिए जानते हैं क्या हैं वो चीजें जिनसे हमें महाशिवरात्रि पर्व की पूजा में बचना है-
केतकी का पुष्प | Mahashivratri Parv 2021
भगवान भोलेनाथ को केतकी का पुष्प अर्पण नहीं करना चाहिए क्योंकि वह उन्हीं के द्वारा श्रापित है क्योंकि प्राचीन काल में उसने ब्रह्मा जी के साथ मिलकर शिवजी से झूठ बोला था जिसके कारण शिवजी ने उसे श्राप दिया था तभी से शिवलिंग पर केतकी का पुष्प अर्पित किया जाना वर्जित है.
तुलसी का पत्ता | Mahashivratri Parv 2021
शिव जी को महारानी तुलसी का पत्र भी अर्पण नहीं किया जाता इसके पीछे का कारण यह है कि तुलसी वृंदा का ही रूप है और वृंदा प्राचीन काल में जालंधर की पत्नी थी जिस जालंधर से देवता बहुत परेशान थे सभी देवता शिव जी के पास गए और जालंधर से उनकी रक्षा के लिए कहा तब शिवजी ने जालंधर से युद्ध किया परंतु जालंधर उन्हीं का रूप था तो वह भी उसे परास्त नहीं कर पा रहे थे.
तब उन्होंने विष्णु जी की मदद ली विष्णु जी वृंदा के पास गए जालंधर का रूप लेकर और वृंदा का पतिव्रत धर्म तोड़ दिया जब वृंदा को पता चला कि वह विष्णु जी हैं तो उसने उन्हें श्राप दिया कि आप हमेशा के लिए पत्थर के हो जाओगे फिर विष्णु जी ने उन्हें श्राप दिया कि तुम लकड़ी की हो जाओगी श्रापित होने के कारण तुलसी का पत्ता शिवजी पर अर्पण नहीं किया जाता.
हल्दी | Mahashivratri Parv 2021
हल्दी शुद्धता का प्रतीक है और जीवन के हर कार्य से जुड़ा हुआ है परंतु शिवलिंग पर यह नहीं अर्पित किया जाता इसका कारण यह है कि हल्दी भले ही बहुत गुणी हो परंतु यह स्त्रीत्व का सूचक है और महादेव की लिंग पुरुषत्व का प्रतीक है. इसीलिए हल्दी को शिवलिंग पर अर्पित नहीं किया जाता.
शंख से जल | Mahashivratri Parv 2021
प्राचीन काल में शंखचूड़ नाम का एक असुर था जो कि देवताओं को बहुत ही परेशान किया करता था जब देवता अत्यधिक परेशान हो गए तो वे शिव जी की शरण में गए तब शिव जी ने उस शंखचूड़ नामक दैत्य का वध किया था इसीलिए शिवलिंग पर शंख से जल नहीं चढ़ाना चाहिए.
कुमकुम या रोली | Mahashivratri Parv 2021
शिवलिंग पर कुमकुम रोली भी अर्पित नहीं करनी चाहिए. क्योंकि कुमकुम या रोली स्त्री के दांपत्य जीवन से जुड़ी हुई है और महादेव तो वैरागी है और वैराग्य के देव है इसीलिए महादेव पर कुमकुम या रोली भी अर्पित नहीं करनी चाहिए.
तो आज हमने आपको महाशिवरात्रि के बारे में कुछ मुख्य जानकारी दी आशा है आपको इससे महाशिवरात्रि को लेकर व्यावहारिक व धार्मिक पक्षों के बारें में विस्तृत ज्ञान प्राप्त हुआ होगा. हमारा प्रयास आगे भी जरी रहेगा. जय भोले नाथ, हर हर महादेव !
तीज त्यौहार और व्यंजन
भारतीय हिन्दू पर्व और खानें के व्यंजन दोनों में बड़ा ही मजबूत रिश्ता है मानों जैसे कभी न खुलने वाली गोल गाठ लगायी हों. इसी कड़ी में हम जानेंगे महाशिवरात्रि पर्व पर बनायें जाने वाले व्यंजनों के बारे में जो बनाना बहुत मुश्किल नहीं है. खुली आँखों से बेहद आसानी के साथ आप इनको बना सकते हैं, चालिए जानते है कुछ विशेष महा पर्व रेसिपी जैसे
उबाले हुए आलू को हल्के मसालों के साथ भूनकर
शिंघाडा के आटे का हलवा
आलू का हलवा
कुट्टू के आटे को उबले आलू में मिलाकर पूरी या पकोड़े बनाकर
चौलाई जिसको राम दाना भी कहा जाता है उसके गुड के साथ लड्डू बनाकर
समां के चावल को दूध में रान्धकर खीर बनाकर
घीया की लौज बनाकर या घीया की खीर बनाकर
आज हम चौलाई लड्डू बनायेंगे
चौलाई के लड्डू या राम दाना लड्डू :
चौलाई जिसको राम दाना भी कहा जाता है व खाने में अत्यंत पोष्टिक व स्वादिष्ट होने के कारण भोजन में भिन्न भिन्न रूपों में शामिल किया जाता है
चौलाई के लड्डू के लिए सामग्री
चौलाई – 250 ग्राम (भूनी हुई)
गुड – 250 ग्राम (शुद्ध गुड बिना मसाले वाला)
पानी – 100 ग्राम लगभग
चौलाई बाजार में कच्ची व भूनी हुई दोनों प्रकार की मिल जाती है अपनी सुविधा अनुसार ले सकते है, अगर आपके पास कच्ची चौलाई है तो उसको भूण लें, इसको भूनना बहुत सरल है, एक कढ़ाई को आंच पर रख कर गर्म कीजियें, अब इसमें छोटे चमचे से लगभग 25 ग्राम (एक मुट्ठी) चौलाई डालें व सूती कपडे की मदद से चौलाई को जल्दी जल्दी घुमाये थोड़ी सावधानी के साथ, चौलाई तुरतं ही पटकने (चटककर फूल जाना) लगेगी, बस कपडे से ही किसी थाल में निकाल लें, सारी चौलाई को इसी प्रकार से भून लें.
चौलाई के लड्डू के लिए गुड की चाशनी
छोटी कढ़ाई में गुड व थोडा सा पानी लगभग 50 से 60 ग्राम डालकर गर्म होने के लिए रखें, व एक तार की चाशनी बना लें. भूने चौलाई में इस चाशनी को डालें व किसी पलटे से अच्छे से मिला लें, जब थोडा ठंडा हो जाये (सुहाता सा) तो हाथ से अच्छे से मिलकर गोल गोल लड्डू बांध लें, अगर लड्डू बंधने में दिक्कत हो रही हो तो हाथों पर थोडा पानी चुपड़ते हुए लड्डू बांध लें.
चौलाई के लड्डू खाने के लिए तैयार है, इनको दूध के साथ व्रत में खाया जाता है.
गुड व आटे का हलवा
गुड व आटे का हलवा बनाना बहुत सरल है.
साबूदाना खीर
व्रत में खायी जाने वाली बेहद स्वादिस्ट डिश साबूदाना खीर बनाना बेहद आसान है
Awesome video sir…..superb about food and festival….superb sir
Apki video dekh kar he mai room par khana bnata hu …super..